3 Feb 2013

सिलसिला 6


मेरा पप्पू अब तक बहुत सारी चिकनाई छोड़ चूका था और ऊपर जींस पर एक बड़ा सा धब्बा बन चूका था जबकि अन्दर जोकी पहन रखी थी मैंने.....

मेरी पूरी हथेली पर चिकनाई की कोटिंग की गई मालूम पड़ रही थी.........मैंने रुमाल निकल कर हथेली को अच्छे से साफ किया......पूरा रुमाल गिला हो गया......फिर मैंने अपने सूखे हाथ को सुंघा तो बड़ी सुहानी और मादक खुशबू आ रही थी. अचानक रुमाल को देखा और सोचा कि इसे बिना धोये अपने पास रखूँगा.....उसके रस की निशानी.....

तभी केबिन में तेज़ रौशनी होने लगी और ज़रीन नज़र आई........वो शाल, हेडफोन वगैरह इकठ्ठा करने में जुट गई.....मेरे पास आकर मुझसे बड़े ही प्यार से पूछा.......कैसा रहा आपका सफ़र, मज़ा तो आया ना आपको और फिर वोही दिलकश मुस्कान.....मैं तो बस उसे देखता ही रह गया......और वो आगे बढ गई.....जाते जाते फिर से मेरे हाथ पर प्यारा सा दबाव देते हुए गई.......

मैं आयशा का इंतजार करने लगा.........लेंडिंग की घोषणा हो गई और वो अभी तक बाथरूम में ही थी............और जैसे ही प्लेन उतरने के करीब पहुंचा वो भाग कर आई, सीट बेल्ट लगाया और आँख बंद करके लेट गई.......

मैं उसे घूर घूर कर देखने लगा......एकदम संतुष्टि से भरा प्यारा सा चेहरा.......और ये मैंने प्रदान की है यह अहसास ही मुझे अपनी नज़रों में विशिष्ट बना रहा था.......

अब मेरी निगाहें उसकी सांस के साथ ऊपर निचे होते उभारों पर गई......मेरी नज़र में ये दुनिया के सबसे बढ़िया वक्ष थे......बहुत भरे भरे और मादक.....मैंने उसके हजारों फोटो सिर्फ इन बब्बुओं को देखने के लिए डाउनलोड किये थे...............और वो साक्षात् मुझसे सिर्फ ९ इंच दूर थे............मैं उनमे खो गया.......कब लेंडिंग हुई और कब सब लोग उठने लगे पता ही नहीं चला......

अरे ये तो जाने वाली है.........क्या इससे बात करूं.......दुबई या इंडिया का मोबाइल नंबर लूं.......क्या दोस्ती करेगी......आगे भी कोई चांस बनता है...........सोचता रहा पर इतने भाव खाने के बाद अब पूछने कि हिम्मत नहीं हो रही थी.........रिक्वेस्ट कैसे करूं...........

कुछ डिसाइड करूं इसके पहले ही वो उठी और बिना मुझे देखे या थैंक्स बोले आगे ज़रीन के पास चली गई जो गेट खोले जाने का वेट कर रही थी.......वो उसके पास जाकर बातें करने लगी.....परन्तु पलट कर एक बार भी नहीं देखा........

वहीँ दूसरी ओर ज़रीन बात तो उससे कर रही थी पर निगाहें बार बार मेरी और उठ रही थी........और फिर ज़रीन ने गेट खोला और आयशा बिना आखरी बार मुझे देखे,   फुर्र से उड़ चली  
उसकी ओर से कोई तवज्जो न दिए जाने के कारण मुझे धक्का लगा और मैं अपनी सीट से हिला तक नहीं. 

ज़रीन ने देखा तो मेरे पास आई और मेरा एक हाथ अपने दोनों हाथों में बड़े प्यार से लेकर पूछा......'क्या हुआ, आप उठे नहीं अब तक'....

मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने ज़रीन को देखा. वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी.

'
मैं आपकी स्थिति समझ सकती हूँ. वो तो बड़ी नाशुक्र निकली. और तो और जाते जाते आपको बाय कहकर भी नहीं गई.'......वो अभी भी मुस्कुरा रही थी.

'
कौन..........किसने बाय नहीं किया मुझसे. ये आप क्या कह रही हैं.'.........मैं एकदम हैरानी से बोला.

'
चलिए, अब आप बनिए मत. वो उस परदे के पीछे से मैंने पूरा मैच देखा है. आपने मेहनत तो बहुत की, पर 
आपके हाथ कुछ भी ना आया.'........बड़ी अदा से बोली वो.

ये सुनकर मैं एकदम से सन्न रह गया. कुछ भी बोलते नहीं बना.

'
अरे ये स्टार लोग होते ही ऐसे हैं, मतलबी........अपना काम निकल जाने पर पहचानते भी नहीं हैं. चलिए आप दुखी मत होईये. जो हुआ सो हुआ.उसने कहा. 

मैं उठ खड़ा हुआ.

आज शाम को आप फ्री हैं क्या.’......उसके यह पूछते ही मैं चौंक गया. फिर संभल कर बोला...हाँ, पर क्यों.

क्योंकि आज शाम मैं भी एकदम फ्री हूँ. लाइए एक मिनट, आपका मोबाइल दीजिए तो’........ ये कहते हुए उसने मेरे हाथों से मोबाइल लिया और उसमें कोई नंबर फीड करने लगी. 

मैं सोचने लगा कि अचानक ये मुझ पर मेहरबान क्यों हो रही हैं. 

तभी उसने नंबर सेव करके डायल करते हुए मोबाईल वापिस लौटा दिया. मैंने देखा, उसमे ज़रीन का नंबर डायल हो रहा है. 

फिर उसके मोबाइल की रिंग बजी और उसने कट करके मेरा नाम टाइप किया और फिर सेव कर लिया.

फिर वो मेरी ओर एक बहुत प्यारी सी मुस्कान बिखेरती हुई थोड़ी झुकी और अपने हाथ से मेरे गाल को अपनेपन से सहलाते हुए बोली.....'अच्छा अभिसार, शाम को मेरे कॉल का वेट करना. अभी चलती हूँ.......बाय'
और वो चली गयी. 

मैंने भी अपना सामान समेटा और बाहर निकल गया.

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