3 Feb 2013

सिलसिला 4


'ऐसा कैसे हो सकता है, मुझे तो बहुत जोर से काटा था. तुम पीठ पर चेक तो करो जरा. '

ये तो मुझे लाइफ-लाइन मिलती ही चली जा रही थी. मैंने उसका टॉप थोड़ा नीचे खिसकाया और अपना हाथ पुन: टॉप में घुसा दिया.

वो थोडा सी टेड़ी होकर बैठ गई ताकि मेरा हाथ आसानी से अन्दर घुस सके.

अब मैंने नीचे से सहलाना शुरू किया.

बहुत ही धीरे धीरे उस निगोड़े अपराधी की खोज चल रही थी. मसलते मसलते मैं पुन: ब्रा स्ट्रेप पर आ गया.

कहीं ब्रा की पट्टियों के अन्दर ना घुस गया हो. प्लीज़ हुक खोल कर अच्छे से पट्टियों को भी चेक करलो.'.......

ये सुनते ही टॉप को फिर ऊपर उठाया, एक बार इधर उधर देख कर जायजा लिया.

फिर सुन्दर और कीमती लाल रंग की ब्रा का हूक खोल दिया. जब खोल के उन्हें ढीला छोड़ रहा था तो बहुत वजन सा लगा. आगे लटके ढाई ढाई किलो के दो कबूतरों का वजन संभाल जो रखा था.

'
अब क्या करूं'

'
पीछे पीछे की जितनी भी एलास्टिक पट्टियाँ है उन्हें अल्टा पलटा कर अच्छे से चेक करो.'

मैंने टॉप को ऊपर गर्दन तक ही खींच दिया. पूरी की पूरी नंगी पीठ नुमाया हो रही थी. डर के मारे भी बुरा हाल था कि कहीं कोई देख ना ले, तो मैंने चारो ओर नज़र घुमाई, कोई नज़र नहीं आया.

अब मैं कंधे की पट्टियों के अन्दर उंगली घुसा घुसा के चेक कर रहा था, चेक क्या बस, उसकी पीठ पर मसाज ही कर रहा था.

अरे ये बगल की तरफ काटा.....हाँ शायद यहीं है.....जल्दी से चेक करो'......और वो अपना एक हाथ अपने बगल की ओर ले जाकर ऊपर से ही खुजलाने लगी........

मैंने पीछे से अपना एक हाथ बगल की और बढाया ब्रा की पट्टियों के नीचे से और फिर हाथ अन्दर घुसाने लगा तो लगा कि गलत दिशा पकड़ ली है क्योंकि वो अब पहाड़ों की खड़ी चढाई शुरू होने वाली थी.......

लालच तो हुआ की इतने शानदार पहाड़ों की सैर का दुबारा मौका शायद ही मिले....परन्तु संकोचवश ऊपर बगल की और रुख मोड़ा और लगभग मसलते हुए उसके चिकने बगल तक पहुँच गया.

उसने अपने दोनों हाथ कुर्सी के हत्थों पर टिका कर बगल में काफी जगह बना दी ताकि मेरा हाथ वहां आसानी से तफरी कर सके.

'
हाँ, यहीं पर सब जगह तलाश करो'.......

और मैं बड़े मजे से उसके बगल की मालिश मैं जुट गया......मेरा हाथ बार बार नीचे पहाड़ी रस्ते पर फिसल रहा था पर वहां ब्रा का कप आड़े आ रहा था........

मेरे दिमाग में घोर द्व्न्द छिड़ गया और एक बार उसके जोबन का मर्दन करने की भयंकर अभीप्सा होने लगी....और जैसे ही उसने कहा कि नहीं मिल रहा तो छोडो यहाँ, कहीं और देखो.....तो लगा कि बस ये आखरी सेकंड है....करना है तो कुछ करले.....

मैंने हाथ ऊपर से खींच कर बाहर निकालने के बजाय सीधे उसके उभार पर हथेली रखी और पल भर में एक बार उसे दबाकर इतनी जल्दी हाथ बाहर खिंचा की उसे कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ.

बाप रे बाप, कितने बड़े है इसके टप्पू और कितने गुदगुदे और कड़क भी.....बाहर से जितने उभरे लगते हैं शायद उससे भी कहीं ज्यादा बड़े होंगे....उन्हें इतना सा दबा कर भी लगा कि लाइफ बन गई यार.

और फिर वो कुछ प्रतिक्रिया दे उससे पहले ही पूछ बैठा कि अब कहाँ देखा जाये...तो उसने सुझाव दिया ..... 'हो सकता है वो सरक कर जींस के अन्दर ना चला गया हो......एक बार उधर भी चेक कर लो.'..........

ये कहते ही उसने अपने दोनों पैर बारी बारी से घुटनों से नीचे मोड़ कर वज्रासन की मुद्रा में कुर्सी पर आड़ी बैठ गई, मुंह साइड रेस्ट की तरफ और पिछवाडा सीधे मेरी तरफ.

अब उसने आगे से अपना बेल्ट और बटन खोल कर जींस को थोडा सा नीचे करते हुए उसमे पीछे से हाथ घुसाने की व्यवस्था कर दी.

अपने दोनों हाथ मोड़ कर साइड रेस्ट पर टिका दिए और उन पर उकडू लेट सी गई. अब पीछे से जींस और नितम्बों के बीच काफी बड़ा गेप नज़र आ रहा था.

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