3 Apr 2013

खूबसूरत साली 3


मेरी सगाई तो हो गई थी| मेरी शादी को अभी दो (२) महीने बाकी थे| और मुझे बैंक ज्वाइन करने में भी अभी एक (१) महिना शेष था| मैं और आशा एक ही शहरमे रहते थे| तो एक दिन मेरी सालियोंने मुझे उनके घर आने के लिए मुझे फ़ोन कर न्योता दे दिया|

ज्योती - नमस्ते जीजू|

मैं - नमस्ते डॉक्टर साहिबा| आज हमें कैसे याद किया|

ज्योती - (शरमाते हुए) बस याद आ गयी तो मन किया की चलो अपने प्यारे जीजू से कुछ बाते की जाये| वैसे आप तो हमें कभी याद ही नहीं करते| अरे हाँ आप का हमसे कोई काम तो नहीं है ना!

मैं - (ज्योती की ऐसी बाते सुन चौंकते हुए) क्यों जी ऐसी क्या बात हुयी जो आप ऐसे कह रही है| क्या हमने आप से कहा है या हमारे हाव भावों से ऐसा प्रतीत हुवा की हमें आप से कुछ काम होगा तो ही आप से बात करेंगे नहीं तो नहीं करेंगे|

ज्योती - अरे जीजू शायद मेरी बात से आप को बुरा लगा| मगर क्या आप को नहीं लगता की आप मुझे सच मैं भूल गए है| (और ज्योती हँसाने लगाती है|)

मैं - (कुछ परेशान होते हुए|) यार मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा की मैं क्या भूल गया हूँ| अरे कुछ समझ में आये इस तरह से बात करो ना|

ज्योती - क्या जीजू आप को आशा ने कुछ बताया नहीं क्या?

मैं - लेकिन किस बारे मैं?

ज्योती - अरे बाबा क्या उसने नहीं बताया आज के बारे में?

मैं - नहीं मेरी उससे दो दिन से बात ही नहीं हुयी| अच्छा अब पहेलिय बुझाना बंद करो और तुम ही बतावो की आज क्या ख़ास बात है जो आप ने हमें फ़ोन करने की जेहमत उठाई| और हमें यूँ परेशान किया इतना उलझी बाते कर के|

ज्योती - पहले तो हम आप से माफी मांगते है अगर आप को बुरा लगा हो तो|

मैं - नहीं मेरे कहने का ये मतलब नहीं था| लेकिन मैं सच कह रहा हूँ की मेरी और आशा की दो दिन से बात ही नहीं हुयी| शायद वो मुझ से कुछ नाराज है|

ज्योती - तभी मैं कहूं की आशा इतनी उदास क्यों है कल से| क्या कुछ जागदा हुवा है क्या आप दोनों मैं कहे तो मैं आप की मदद कर सकती हूँ|

मैं - हाँ यार वो मैंने कुछ बोल दिया था गुस्से मैं तो वो नाराज हो गयी कल सुबह में| पर तुम मेरी मदद क्यों करोगी इस बात में? तुम्हे भी तो गुस्सा होना चाहिए था इस बात पर की मेरा आशा से झगडा हुवा है| मुझपे इतनी मेहरबानी करने की वजह| क्या मुझसे से कुछ चाहिए क्या?

ज्योती - चाहिए भी और नहीं भी| हाँ अगर आप चाहे तो मैं आपकी मदद कर दूँगी|

मैं - चलो ठीक है तो कर दो मदद| पर ये कैसे संभव है?

ज्योती - वो बात आप मुझपे छोड़ दीजिये| बस आप को एक काम करना होगा|

मैं - बोलिए क्या करना होगा| आप जो कहेंगी वो करने के लिए तैयार हूँ मैं| चाहे तो मैं आप से प्रोमिस करता हूँ|

ज्योती - ठीक है तो प्रोमिस है| आप को घर आना होगा आज शाम को|

मैं - आज! आज कुछ खास है क्या?

ज्योती - अरे मैं बातो बातों में भूल गयी आपको| आज मेरा जन्मदिन है| और मैंने आप को यही बताने के लिए फ़ोन किया है|

मैं - ज्योती सबसे पहले जन्मदिन की ढेर साडी शुभकामनाये| और मैं बिना भूले आज शाम को घर आ जाऊंगा|

ज्योती - शुक्रिया जीजू| अब मैं फ़ोन बंद करती हूँ| मुझे बहोत साड़ी तैयारियां करनी है|

मैं - अगर तुम्हे कुछ मदद चाहिए तो मैं अभी आ सकता हूँ|

ज्योती - ठीक है तो आ जाईये| मैं आप का इन्तजार करती हूँ|

इतना बोल ज्योती ने फ़ोन बंद कर दिया| और मैं भी १० मिनट में तैयार हो के आशा के घर की तरफ चल दिया|
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जाते जाते मुझे एक ख्याल आया| क्यों ना कुछ मिठाई ली जाए| तो मैं एक मिठाई की शॉप में चला गया| मैंने उस शॉप से रस मलाई ली और आशा की घर की और चल दिया|

घर जाते ही ज्योती ने दरवाज़ा खोला| जैसे ही मैंने उसे देखा मेरा मूह खुला का खुला रह गया| ज्योतीने जो कपडे पहने थे उसे देख मैं हैरान ही रह गया| उसने सिर्फ एक टॉप पहना हुवा था जो उसकी जांघों को भी छुपा नहीं पा रहा था|शायद उसने अंदरसे कुछ पहना भी नहीं था| क्यों की उसके टॉप के उपरसे ही मुझे उसके उरोजों के तने हुए काले चुचक साफ़ दिख रहे थे| और टॉप के आगे कोई बटन भी नहीं था और उसके टॉप से उसके उरोजों के बीच की दरार दिख सकती थी| और उसके उरोजों के कुछ कुछ दर्शन भी हो रहे थे|

मुझे ऐसा देखते देख ज्योती कुछ शरमा गयी और अन्दर भाग गई| वो जब भाग रही थी तो उसके कुल्हे बहोठी थिरक रहे थे|और भागते वक़्त मुझे उसका टॉप कुछ ऊपर सा हो गया तो मुझे उसके नग्न कुल्हे दिख गए और उसके निचे शायद उसने कुछ पहना नहीं था| क्या लग रही थी| मैं ये सब देख इतना उत्तेजित हो गया की मेरा पप्पू तम्बू बना के पेंट में खड़ा हो गया| ये तो अच्छा हुवा की ज्योती ने ये सब नहीं देखा|

मैं जब अन्दर गया तो ज्योती की आवाज़ आ गयी|

ज्योती - जीजू दरवाज़ा बंद कर लीजिये| घर मैं कोई नहीं है| सब लोग बाज़ार गए हुए है| और प्राप्ती स्कूल को गयी है|

उसकी यह बात सून मेरे शरीर में रोंगटे खड़े हो गए| जैसे तैसे मैंने दरवाजा बंद कर लिया और उसे कहा--------

मैं - ज्योती तुम कहा हो|

ज्योती - अन्दर हूँ|

मैं - क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ|

ज्योती - आइये न आप को किस ने रोका है|

मैं - अगर सब लोग बहार गए थे तो मुझे इतनी जल्दी कैसे बुला लिया|

मैं ये बोलते बोलते अन्दर दाखिल हुवा| वो अभीभी उसी टॉप में बैठी कुछ काम कर रही थी| उसे देख मेरे पप्पू ने फिर से हरकत करनी शुरू कर दी| इस वक़्त ज्योती मेरे पेंट की तरफ ही देख रही थी| मेरी हालत देख वो मन में ही हस रही थी| और वो बोल पड़ी|

ज्योती - मुझे क्या पता था की आप सच में इतने जल्दी आ जायेंगे| मुझे लगा था आप शायद एक घंटे बाद आयेंगे|

मैं - किसको घायल करने का इरादा है|

ज्योती - नहीं तो| मैं तैयार हो रही थी| इतने में आप आ गए|

मैं - लेकिन दरवाज़ेपे अगर कोई और होता और तुम्हे इस हालत में देखता तो उसका क्या होता|

ज्योती - वही होता जो अभी आप का हाल है|

मैं - याने तुमने जान बुझ कर ऐसे कपडे पहने है| मुझे उत्तेजित करने के लिए|

ज्योती - जैसे आप ठीक समझे| मैं तो सच में तैयार हो रही थी| मैं अभी नहाने जा रही थी|

मैं - तो अब तुम्हे किस ने रोका है| जावो नहा के आ जावो मैं रुकता हूँ| हाँ जाते वक़्त टीवी शुरू कर देना|

ज्योती - ठीक है मैं अभी आती हूँ नहा के|

ऐसे बोल वो उठ गयी और टीवी शुरू करने के लिए रिमोट खोजने लगी| रिमोट शायद निचे रखा हुवा था तो उसे उठाने के लिए वो जैसेही झुकी मुझे उसकी खुली गांड के फिरसे दर्शन हो गए| इस बार मैं अपने पर काबू ना प् सका और सीधे जाके उसे मैंने पीछे से पकड़ लिया| जैसे उसे इस अचानक हमले से कुछ ऐतराज़ नहीं था तो वो कुछ बोली नहीं सिर्फ बोली|

ज्योती - जीजू मैं आशा नहीं हूँ| किसीने देख लिया तो क्या सोचेगा की कैसा दामाद है जो अपनी साली से ऐसे बेशर्मोकी तरह चिपक गया है|

मैं - अब यहाँ कोई नहीं है तो किसीके कुछ कहने का सवाल ही नहीं उठता| वैसे जिसके पास ऐसी ख़ास साली हो वो जीजा तो बेशरम ही होगा|

मैंने जब उसे पकड़ा था तो मेरा हाथ उसके पेट पे था| उसने भी अपना हाथ मेरे हाथ पे रख दिया|

क्रमशः|
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