4 Feb 2013

सिलसिला 18


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सुनयना के ढेर होते ही उसके हाथों की पकड़ मेरे बालों पर से ढीली पड़ती चली गई. मैं उठा तो मैंने अपना पूरा मुँह उसके योनी-रस से लिथड़ा हुआ पाया.

मैंने बाथरूम जाकर अपना चेहरा साफ़ किया और वापिस आकर सुनयना के बाजू में लेट गया.

वो तो अभी भी अपने इस भीषण ओर्गास्म के गिरफ्त में थी और उसकी साँसे अब तक सामान्य नहीं हो पा रही थी.

मैं करवट लेकर अपना मुँह उसके कंधे में घुसाता हूं और एक हाथ उसके मम्मों पर रखकर अपना एक पैर मोड़ कर उसके पैरों के ऊपर रखता हूं.

जैसे ही मेरे बेईमान हाथ की शैतानी शुरू हुई, वो तुरंत करवट लेकर मुझ से लिपट गई और मुझे कस के जकड़ लिया.

मेरे होंठ उसके नंगे कंधे पर आ जाते हैं. मुलायम गद्देदार अंग का स्पर्श मेरे होंठों पर थरथराहट उत्पन्न कर देता है और मैं उन्हें चूमने का लोभ संवरण नहीं कर पाया.

उधर उसे भी कुछ मस्ती सूझी तो उसने अपने होंठ से मेरे कान की लटकन सड़प ली और फिर उस मृदु-अंग को मज़े ले लेकर चूसने लगी. 

उसके शरीर की सुगंध मुझे बेहद खुशगवार लग रही थी. अपनी नाक को उसकी त्वचा पर घिस घिस कर उसे अपने नथुनों में समाने लगा.

इतनी खेली-खायी होने के बावजूद भी वो मुझे इतनी मासूम सी प्रतीत हो रही थी कि मैं उस पर फ़िदा होने लगा. मैं उसके पावन प्रेमाबंध में नख से शिख तक आबद्ध होने लगा था.

इस श्वेत-वर्णीय तरुणी पर मुझे दुनिया भर का प्यार उमड़ आया और उसी के वशीभूत मैंने उसकी काया को कस कर आबंधित कर लिया और उसके गालों पर चुम्मों की अनवरत झड़ी लगा दी.

उसने भी मेरी भावनाएं एकदम सही ट्यूनिंग से कैच कर ली और उसने भी मुझे अपने में लिपटा लिया और कस के चिपटने लगी. 

हम दोनों ही एक दूसरे के और और नज़दीक पहुंचना चाह रहे थे परन्तु शरीर की सीमा-रेखा हमें एक जान नहीं होने दे रही थी.

पता नहीं एक-दूजे लोग कैसे समा जाते हैं, हम तो इस वक्त जरा भी सफल नहीं हो पा रहे थे.

अब मैंने फिर से अपना निशाना ताड़ा और अपना मुँह उसके निप्पल पर ले आया. उसे गुलाबजामुन की तरह पूरा गप्प किया और फिर पूरी शिद्दत से उसे चूसने लगा. 

उसने कोई विरोध नहीं किया वरन वो पलट कर पीठ के बल हुई और मुझे अपने पर्वत शिखरों पर जी भर कर कुलाँचे भरने की पूरी आज़ादी प्रदान कर दी.

मैंने अपने आपको, अपने चोपायों पर संतुलित किया और उसके उभरे कोमलांगों में फिर से यहाँ वहाँ मुँह मारने लगा. 

मेरे होंठ और जीभ की सरपट-सरपट गीली कार्यवाही, उसमे पुन: काम तरंगे प्रवाहित करने लगी.

उसके शरीर में डायनामिक फ़ोर्स उत्पन्न होने लगा जिसके चलते वो मस्ती से मचलने लगी. मज़े की अधिकता उसके मुँह से कराहों के माध्यम से अभिव्यक्त होने लगी.

वो इतनी मदमस्त हो गई कि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें. कभी मेरा मुँह अपनी छाती में दबाती कभी; अपनी दोनों टाँगे बिस्तर पर पटकती, तो कभी मुझे अपनी बाँहों में समेटने का असफल प्रयास करती.

इसी तारतम्य में अचानक उसके कर-कमल मेरे कटी-प्रदेश मध्य स्थित, अग्र-उर्ध्व दौलीत, मखमली चर्म-मंडित, अति-सख्त श्याम दंड पर पड़े, तो उसके अंग-प्रत्यंग में उत्साह और उमंग की सैकड़ों लहरें दौड़ गई.

वो मस्तानी अब मेरे दंड को बड़ी ही बेहयाई से मुठियाने लगी. 

मैं अभी भी उसके पर्वत-द्वय की ख़ाक छान रहा था जबकि पर्वतमाला के सुदूर ढलान पर स्थित उसका महीनों से सूखा पड़ा पहाड़ी झरना आज ही आज में दूसरी बार पुन: तीव्र वेग से छलक उठा.

मेरी जालिम कार्यवाही से उसकी छाती पर जड़े दो श्याम-रत्नों पर उत्पन्न होने वाले कामुक संवेगों से वो इतनी उद्वेलित हो गई कि उसका दूसरा हाथ, खुद-ब-खुद उसके झर-झर फुरफुराते पहाड़ी नाले पर पहुँच गया.

उसकी उँगलियाँ उस तंग गीली गार में रिसती चिकनाई में मटकने लगी. ये उसका, इस अजब-गजब संवेदनों से भरे खेल में लगातार बढ़ती बैचेनी को काबू में लाने का असफल सा प्रयास था.

पर वो बावली क्या जाने कि अनजाने ही वो अपने अति-संवेदनशील अंग को कुरेद कुरेद कर उसकी खुजली को और बड़ा ही रही थी.

अब उसके दोनों कर-कमल, हस्त-मैथुन में लिप्त थे. एक हाथ मेरे दंड पर व्यस्त, तो दूजा स्वयं की फुद्दी में पैवस्त.

आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती. अब तो उसकी शीरी को मेरे फरहाद से मिलना ही था. 

और ये नेक कार्य भी उसके ही दोनों हाथों ने अंजाम दिया. वो अपने हाथ से मेरे बकरे को हलाल-गृह की ओर खींचने लगी.

मैंने भी अपने दोनों घुटने उसकी जांघों के बीच में फसायें और उनको चौड़ाते हुए अपने पिस्टन को इंजन के मुख पर झुकाता चला गया. 

केस्ट्रोल की उत्तम चिकनाई युक्त स्निग्धता में मेरा पिस्टन इंजन में समाता चला गया और देखते ही देखते किसी कुशल डाइवर की भांति वो उस पूल में ओझल हो गया.

उसके हाथों ने जो जिम्मा लिया था वो पूरा हो गया था. मेरा पप्पू जन्नते-गार में मस्ती की डुबकियां लगाने लगा. 

और अब शुरू हुआ वो खेल जिसके लिए सारी कायनात पागल है. मैं भी पूरा मगन होकर एक्स्बी-नेशन के इस राष्ट्रिय खेल को खेलने लगा.

खेल के शुरुवाती दौर में सारी सर्विस में ही कर रहा था. कभी मेरे धक्के दायर हो रहे थे, तो कभी कुछ मिस-फायर. लेकिन कुछ ही देर में हम दोनों खिलाडियों ने अपनी लय पकड़ ली.

नीचे जब सब कुछ स्मूथली हेंडल होने लगा तो, कुछ अतिरिक्त बोनस मज़े पाने और देने के लिए मैंने अपने होंठ सुनयना के होंठों में ठेल दिए. उसने उचक-निचक करते करते ही मेरे अधरों को बुरी तरह से जकड़ लिया.

अब तो उसकी निकलने वाली सारी कराहें और आंहे मुँह के बजाय नाक से निकलने लगी.

मैंने उसकी मस्ती में थोड़ा और तड़का लगाने के लिए अपनी कोहनियों को मोड़ कर उँगलियाँ उसकी छाती पर उभरे अंगूरों के इर्द-गिर्द कसी और लगा उन्हें मरोड़ने.

मेरा ऐसा करना हुआ और सामने वाला खिलाड़ी का खेल भी पूरे शवाब पर आने लगा.

मुझे अब वो एक भी ऐसनहीं मारने दे रही थी और हर सर्विस पर जोरदार रिटर्न लगाने लगी.

अब लंबी लंबी रैली चलने लगी. दोनों ही पूरे जोशो-खरोश से शॉट पे शॉट लगाने लगे.

अभी कुछ देर पहले ही उसने पहला सेट लूज किया था तो इस सेट में वो कतई खेल को जल्दी खतम करना नहीं चाहती थी. पर उसे डर था कि मैं जल्दी ये सेट ना छोड़ दूं.

पर आप तो जानते ही हैं ना आपके अभि ब्रो को. वो जब तक चाहे, खेल में बना रह सकता है. लिहाजा अब मैं सर्विस करने में थोड़ी ढील देने लगा.

वो डर गई कि शायद मैं आ रहा हूं तो उसने मेरे होंठ उगले और बोली.....अभि, मुझे तो जरा और देर लगेगी. कहीं तुम हो तो नहीं रहे हो ना.

तो मैं बोला.......बेबी, आज तुम पर किस्मत मेहरबान है तो मैं तुम्हारे साथ ना-इंसाफी करने वाला कौन होता हूं. तुम हुकुम तो करो, ये उचक-निचक अगले एक घंटे तक भी जारी रह सकती है.

ओह माय जानू, यू आर सिम्पली सुपर्ब.’.........ये कहते हुए मारे खुशी के मुझसे कस के चिपट गई और नीचे से हौले हौले शॉट मारने लगी.

एनिथिंग फोर यू डार्लिंग. आज तो तुम जी भर के जी ही लो.’......ये कहते हुए मैंने फिर से अपने सारे मोर्चे मुस्तैदी से संभाल लिए. वोही.... चुम्बन ..... मर्दन.... और..... धमाधम.

कुछ देर यूँ ही लयबद्ध आवृति में दोनों ओर से बराबरी का खेल चलता रहा.

फिर जब दोनों को ही एक अल्प विराम की आवश्यकता महसूस हुई तो मैंने रूककर उससे कहा........ सुनयना, तुम अब मेरे घोड़े की सवारी करना चाहोगी.

वो बड़ी ही हैरानगी से देख कर बोली........ ये घोड़ा कहाँ से बीच में आ गया हमारे.

मैं हँसा और एक झटके में पलटी मारते हुए. बम्बू घुसाये हुए ही, उसको अपने ऊपर ले लिया.

उसके कन्धों को थामते हुए उससे कहा..........ये रहा घुड़सवार और ये रहा घोड़ा.

मैंने उसके हाथ मेरे आधे बाहर पप्पू पर टिकाते हुए घोड़े का मतलब समझाया और फिर बोला.......तो चलो अब हो जाये घुड़सवारी.’.......ऐसा बोलकर मैं अपने पुट्ठों को ऊपर नीचे कर करके उसे उछालने लगा.

बात उसके पूरी समझ में आ गई थी. उसने मेरी छाती पर फिसलते हुए अपने हाथों से मेरे कन्धों को थामा और धचक-पेल शुरू कर दी.

वो घस्से तो लगा रही थी पर एकदम अनाड़ी की तरह. रिदम सेट ही नहीं हो पा रही थी.

ये देख कर मैंने अपने हाथों में उसके नितंब थामे और फिर नीचे से जोरदार घस्सों की बौछार कर दी. वो अचानक नीचे से होने वाले लगातार तेज़ आक्रमण से हकबका उठी.

उसके पेल्विस में मस्ती का जो तेज़ बवंडर उठा वो उससे सराबोर हो उठी. पता नहीं सैकड़ों घस्सों के बाद मैं थक कर रुक गया.

वो तो परन्तु तेज़ लहरों में बहे जा रही थी. मेरे रुकने पर वो फिर से अपना अनाड़ी खेल दिखने लगी.

मैं एकबार से फिर उसको साधारण भारतीय मुद्रा में ले आया........मतलब कि मिशनरी पोस्चर में. पप्पू को एकबारगी अच्छे से सेट किया और जड़ तक अंदर ठेल दिया.

कोहनियों को टिकाते हुए अपने दोनों निप्पल्स को उसके निप्पल्स से जोड़ दिया और हाथों में उसका चेहरा थामा और होंठों से होंठ मिला दिए. आल सेट .............एंड गो............

और चल पड़ी अपनी नाव.........धमाधम.... धमाधम.... धमाधम....

और उधर वो भी लगी थी मेरी हर ईंट का जवाब पत्थर से देने में. घस्सों का बहुत ही सुन्दर तारतम्य जम गया था. हम दोनों अनवरत सिन्क्रोनाईस्ड घस्सों में लीन हो गए.

उसके दोनों पैरों ने मेरे पैरों के इर्द-गिर्द कुंडली मारी हुई थी और दोनों हाथों से मेरी पीठ को जकडा हुआ था.

दोनों ही पसीने पसीने हो चुके थे.

मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरे और उसके निप्पल्स एक दूसरे से चिपक गए हैं और उसकी नोंकों से तेज़ उर्जा मेरे अंदर भर रही है.

और यही उर्जा मेरे पप्पू से होते हुए पुन: उसमे प्रवाहित हो रही है.

ऊपर से आ रही है और नीचे से वापिस जा रही है.

इस तरह एनर्जी का एक सर्किल बन गया है और वो हम दोनों में रोटेट हो रही है.

घस्सों में तेज़ी आती जा रही थी और दोनों एक दूसरे को बुरी तरह से जकड़े हुए थे.

मैंने उसके होंठ छोड़े और अपना चेहरा उसके सिर के पास तकिये में घुसा दिया.

और जैसे जैसे शीर्ष के करीब आने लगे ये उर्जा का चक्र तेज़ी से हम दोनों के शरीरों में घूमने लगा.

हम अब अपने भौतिक शरीर के अहसास से मुक्त होते जा रहे थे और ये उर्जा हम दोनों को एक दूसरे से और और नजदीकी से आबद्ध किये जा रही थी.

घस्सों का वेग अपने चरम पर था.......और अचानक उसके मुँह से एक चीख सुनाई दी और फिर वो पत्तों की तरह कांपने लगी.

यही वो वक्त था जब मेरे अंदर भी दो स्थानों पर विस्फोट हुए.

एक तो नीचे, जिसके परिणाम स्वरुप मेरे दंड की सख्ती अब पिघल कर सुनयना के प्रेम-छिद्र में समाने लगी थी.

और दूसरा मेरे मस्तिष्क में जिसके फलस्वरूप मेरा दिमाग शून्य हो गया.

.............

............

............

पता सब चल रहा था पर दिमाग बिलकुल रुक गया था. अवेयरनेस पूरी थी पर विचार सारे के सारे दम तोड़ चुके थे.

और ये क्या हुआ........मैं तो पूरा का पूरा मेल्ट होकर उसमे समा गया.

द्वेत मिट गया...... एक जान हो गए हम...... शरीर का कोई भी भान नहीं था इस वक्त............उर्जा-शरीर एक दूसरे में आकंठ डूबे हुए थे.

ये था सम्भोग के शिखर पर ट्रान्स का मेरा पहला अनुभव.

शायद भौतिक और मानसिक तल पर होने वाले सेक्स से एक कदम आगे बड़ा कर .............आत्मिक तल पर घटित होने वाले सम्भोग की एक विरल सी झलक.

जाने कितनी ही देर हम एक दूसरे में समाये रहे.

फिर थोड़ा सा खिसक कर मैंने नाईट बल्ब को ऑन कर दिया. मेरा पप्पू सिकुड़ कर उसकी गली से बाहर आ चुका था पर मैं वैसे ही लेटा रहा और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगा.

उसने आँख खोली........मेरी और देखा.............उसके होंठ कुछ कहने को लरजे.........फिर वे कंपकपाने लगे.........

कंठ अवरुद्ध हो गया............कुछ कहने का अथक प्रयास किया उसने पर सब व्यर्थ............अंदर की सारी भावनाएं आँखों से फूट पड़ी.

उसने अपनी हथेलियों से अपना चेहरा छुपाने का प्रयास किया पर मैंने उसके हाथ पकड़ लिए.

उसने अपना चेहरा मोड़ा तो उसका बाँध टूट पड़ा और उसकी भरभरा कर रुलाई फूट पड़ी.

मैंने उसका चेहरा अपनी ओर किया तो देखा कि वो एक मासूम बच्ची की तरह से रो रही थी.

मुझे उस पर इतना ज्यादा प्यार उमड़ आया कि मेरे भी आँसू निकलने को तत्पर हो गए.

पुरुषोचित इगो के वशीभूत हो मैंने अपनी भावनाएं दबाई और उसको अपने पहलु में लपेट लिया.

काफी देर तक उसका, पता नहीं क्या-क्या अंदर रुका हुआ, आंसुओं में धुल-धुल कर साफ़ होता रहा.

मैं उसे लिपटाये हुए ही करवट से हो गया और अपने हाथ से उसकी पीठ सहलाते रहा.

वो चुप हुई तो हम दोनों उठ कर बैठ गए. एक बार फिर मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भरा.

उसका अश्रुपूरित चेहरा............उसने मुझसे नज़र मिलाई.........

मैंने अपने होंठों को उसकी पलकों से लगा कर उसकी अमूल्य अश्रु की बूंदों को अंगीकार किया.

उसने फिर से मुझसे नज़रें मिलाई और फिर एक मनमोहक मुस्कान के साथ पलकें झुका ली.

उसके पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं बचा था.

उसकी झुकी पलकें............जीवंत मुस्कान............और कृतज्ञतापूर्ण आंसू............. ये बहुत कुछ जो कह रहे थे.

8 comments:

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